इलेक्ट्रिक वाहनों की रफ्तार भारत में जितनी तेज़ हो रही है, उतनी ही ज़रूरत अब EV चार्जिंग स्टेशन की भी है। लेकिन इस बीच कर्नाटक से आई एक बड़ी खबर ने इलेक्ट्रिक वाहन उपयोग करने वालों की चिंता बढ़ा दी है। राज्य सरकार ने 2,500 EV चार्जिंग स्टेशन लगाने की जो योजना बनाई थी, उसे अब रोक दिया गया है। ऐसे समय में जब केंद्र सरकार इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए लगातार योजनाएं ला रही है, कर्नाटक का यह फैसला पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है।
EV चार्जिंग स्टेशन की योजना पर लगी रोक
कर्नाटक सरकार ने एक समय पर यह एलान किया था कि वह पूरे राज्य में 2,500 EV चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेगी। इसके लिए टेंडर भी निकाले गए थे और कई प्राइवेट कंपनियों ने इसमें रुचि दिखाई थी। योजना का मकसद था कि पूरे कर्नाटक में एक मजबूत EV चार्जिंग नेटवर्क तैयार किया जाए ताकि इलेक्ट्रिक कार और बाइक चालकों को लंबी दूरी तय करने में दिक्कत न हो। लेकिन अब सरकार ने इस योजना को रोकने का फैसला ले लिया है और इसका कारण प्रशासनिक और व्यावसायिक जटिलताओं को बताया गया है।
EV चार्जिंग स्टेशन की कमी से क्या होंगे असर
देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल की मांग लगातार बढ़ रही है। खासकर मेट्रो शहरों में लोग पेट्रोल-डीजल की महंगी कीमतों से परेशान होकर EV की ओर रुख कर रहे हैं। लेकिन अगर चार्जिंग की सुविधा ही उपलब्ध नहीं होगी, तो EV का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाएगा। EV चार्जिंग स्टेशन ना होने की वजह से लोगों को लंबी दूरी की यात्रा से डर लगने लगता है। कर्नाटक जैसे तकनीकी रूप से उन्नत राज्य से जब ऐसी खबर आती है, तो बाकी राज्यों पर भी इसका असर पड़ता है।
सरकार का बयान और पब्लिक का रिएक्शन
राज्य सरकार का कहना है कि EV चार्जिंग स्टेशन योजना को पूरी तरह से रद्द नहीं किया गया है, बल्कि उसमें कुछ फेरबदल किए जा रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक नए मॉडल पर काम चल रहा है, जिससे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप और निवेशकों की भागीदारी बढ़ाई जा सके। लेकिन आम जनता और इलेक्ट्रिक व्हीकल मालिकों में इस फैसले को लेकर नाराजगी देखी जा रही है। लोग सवाल कर रहे हैं कि जब सरकार लोगों को इलेक्ट्रिक गाड़ी खरीदने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, तो चार्जिंग की सुविधा देने में पीछे क्यों हट रही है।
EV चार्जिंग स्टेशन और भारत का भविष्य
भारत सरकार 2030 तक देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लक्ष्य पर काम कर रही है। इसके लिए न सिर्फ सब्सिडी दी जा रही है, बल्कि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए भारी निवेश की बात भी हो रही है। लेकिन अगर राज्य सरकारें इस दिशा में कदम पीछे खींचती हैं, तो राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा। EV चार्जिंग स्टेशन का जाल बिछाए बिना इलेक्ट्रिक वाहन अपनाना एक अधूरी योजना की तरह ही रहेगा।
कर्नाटक के फैसले का उद्योग पर असर
कर्नाटक सिर्फ आम लोगों के लिए नहीं, बल्कि EV कंपनियों के लिए भी एक बड़ा बाज़ार है। यहां कई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स और स्टार्टअप्स काम कर रहे हैं जो EV चार्जिंग स्टेशन बनाने और ऑपरेट करने की तैयारी में थे। सरकार के इस फैसले से इन कंपनियों की योजनाएं भी प्रभावित हो सकती हैं। निवेशकों को भी अब दोबारा सोचना पड़ सकता है कि वे EV इंफ्रास्ट्रक्चर में पैसा लगाएं या नहीं।
बदलते फैसले से भड़के उपभोक्ता
जिन लोगों ने हाल ही में अपनी पेट्रोल-डीजल कारें बेचकर इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ खरीदी थीं, अब वो सोच में पड़ गए हैं। उनका कहना है कि EV खरीदते समय सरकार के वादों और स्कीम्स पर भरोसा किया गया, लेकिन अब जब चार्जिंग स्टेशन की स्कीम ही हटा दी गई है, तो सफर मुश्किल हो गया है। खासकर दूर-दराज़ के इलाकों में रहने वाले लोग अब डरने लगे हैं कि कहीं रास्ते में चार्ज खत्म न हो जाए और गाड़ी बीच सड़क पर रुक न जाए।
अब EV रफ्तार को कौन देगा चार्ज?
एक ओर सरकारें लोगों से कह रही हैं कि पेट्रोल-डीजल छोड़कर इलेक्ट्रिक की तरफ बढ़ो, वहीं दूसरी तरफ चार्जिंग स्टेशन जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ब्रेक लगा रही हैं। ऐसा कैसे चलेगा? जब गाँव से लेकर शहर तक EV चलाने की बात हो रही है, तो सरकार को चार्जिंग स्टेशन लगाने की जिम्मेदारी निभानी होगी। नहीं तो लोग कहेंगे – “का फायदा ऐसी गाड़ी का, जो चलाए से पहले चार्ज ढूंढना पड़े!”
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